आदिवासी संगठन द्वारा 29 दिसंबर 2023 को अमरावती जिले में आदिवासी संगठन के द्वारा अर्ध नग्न आंदोलन किया गया और मोर्चा निकाला गया जो की विभागीय आयुक्त कार्यालय तक पहुंचा।
महादेव कोली समाज: कई जगह महादेव कोली समाज को आदिवासी होने का जाती प्रमाण पत्र मिल गया है, उसी को लेकर आदिवासी समाज और संघठन, आक्रोश मे है, और, अमरावती जिल्हाधिकारी कार्यालय के सामने, आंदोलन कर रहे, महादेव कोली समाज आमरण आंदोलन करके, दबाव लाने की कोशिस कर रहा है। इस वजह से आदिवासी समाज ने अर्धनग्ण आंदोलन किया।
आदिवासी समाज द्वारा अर्धनग्न आंदोलन की रैली निकाली गई और विभागीय आयुक्त कार्यालय तक पहुंचा और ज्ञापन सोपा जिसमें कुछ इस तरह लिखा हुआ था।
प्रति,
माननीय. मुख्यमंत्री महोदय, महाराष्ट्र राज्य,
के माध्यम से, माननीय. कलेक्टर, अमरावती.
विषय: अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) में धनगर, कोली और अन्य जातियाँ शामिल नहीं होनी चाहिए। इस मुख्य मांग के संबंध में निम्नलिखित विभिन्न फोकस हैं।
महोदय,
उपरोक्त के अनुसरण में अनुरोध है कि राज्य में आरक्षण के नाम पर नाममात्र की जातियाँ वास्तव में अनुसूचित जनजातियों (आदिवासियों) में घुसपैठ करने का प्रयास कर रही हैं। जैसे धनगर, कोली, बंजारा और अन्य जातियों को “जाति” की परिभाषा के तहत वर्गीकृत किया गया है, न कि “अनुसूचित जनजाति” की परिभाषा के तहत। इन सभी जातियों (एन.टी. और एस.बी.सी.) को इस श्रेणी के तहत राज्य में अलग से आरक्षण दिया गया है। फिर भी सभी राजनीतिक दलों की नीति आरक्षण के नाम पर राज्य में सामाजिक अस्थिरता पैदा कर आदिवासी जनजातियों के अस्तित्व को खत्म करने की है और इसके लिए आरक्षण बचाव आंदोलन के माध्यम से कलेक्टोरेट अमरावती में अनिश्चितकालीन धरना आंदोलन चल रहा है. समिति। इसके समर्थन में भीमल चैन थाना कमेटी सरकार को निम्नलिखित मांगें सौंप रही है.
1) महाराष्ट्र राज्य में वास्तविक आदिवासियों के लिए 1950 के संवैधानिक आरक्षण की सूची में गैर-आदिवासी धनगर, कोली, बंजारा और अन्य जातियों को शामिल नहीं किया जाना चाहिए।
2) टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) मुंबई द्वारा धनगर जाति के संबंध में सर्वेक्षण रिपोर्ट माननीय। उच्च न्यायालय में प्रस्तुत किया जाएगा और आम जनता की जानकारी के लिए खुला रखा जाएगा।
3) 20 नवंबर 2023 को श्री सुधाकर शिंदे की अध्यक्षता में धनगर जाति के लिए सरकार द्वारा गठित अध्ययन समूह को रद्द करें।
4) चूंकि आदिवासी जनजाति संवैधानिक रूप से किसी भी धर्म से संबंधित नहीं है, इसलिए जातीय घृणा के कारण ईसाई, मुस्लिम और अन्य धर्मों में परिवर्तित हुए वास्तविक आदिवासियों को संवैधानिक आरक्षण से बाहर करने का मतलब है कि आदिवासियों का अस्तित्व कम करके नष्ट कर दिया जाएगा। भारत में वास्तविक आदिवासियों को संवैधानिक आरक्षण का प्रतिशत – सूचीकरण अधिनियम लागू नहीं होना चाहिए।
हमें उपरोक्त मांगों का संवैधानिक रूप से अध्ययन कर उपरोक्त प्रश्नों का समाधान ढूंढना चाहिए और आदिवासी समाज पर हो रहे अतिक्रमण को रोकना चाहिए। निवेदन है कि हमारी मांगों को जल्द से जल्द पूरा किया जाए
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