रायपुर: छत्तीसगड़ मे, कोयला खदानों के लिए पेड़ों की कटाई पुलिस सुरक्षा घेरे मे, पुलिस ने गुरुवार को उन लोगों को हिरासत में लिया जो हसदेव क्षेत्र में कोयला खनन के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे थे। स्थानीय प्रशासन ने दावा किया कि उसके पास पेड़ काटने के लिए सभी आवश्यक अनुमतियां हैं, आपको समझ मे आता है तो आप बताइये, पेड़ो की कटाई के लिए सरकार से अनुमति कैसे मिल जाती है।
आने वाले भविष्य को खतरे मे डालने के लिए अनुमति कैसे मिल जाती है, हम आपको मेलघाट की कुछ बाते बताते है, अगर किसी के पास 10-20 भैंस है, और भैंस अगर जंगल मे चारा चरने भी घुस जाए तो वन विभाग के अधिकारी, भैंसो को अपनी गिरफ्त मे ले लेते है, समझिए यहा भैंसो को जंगल मे चराने की अनुमति नहीं है, यहा पूरी जंगल काटने की आज़ादी है, अनुमति है।
1252.447 हेक्टेयर में फैले छत्तीसगढ़ के परसा कोयला खदान के इलाके में 841.538 हेक्टेयर इलाका जंगल में है। जंगल काटने के लिए पेट्रोल से चलने वाली 500 से अधिक आरा मशीनों की मदद ली जा रही है। 450 के करीब जवान तैनात किए गए है, ताकि जंगल काटने मे कोई परेशानी ना आए।
छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन हुआ है कॉंग्रेस की सरकार थी, bjp की सरकार से पहले जब कॉंग्रेस कि सरकार थी तब 2015 में मदनपुर गांव में राहुल गांधी आए थे। और राहुल गांधी ने अपने संभोधन मे कहा था, की हम आपकी जल जंगल जमीन बचाने के लिए उनके साथ है, तब काँग्रेस की सरकार थी अब bjp की सरकार है, फिर भी लोग इसके खिलाफ खड़े है और विरोध कर रहे है, चाहे सरकार किसी की भी हो,
केंद्रीय पर्यावरण और वन मंत्रालय ने इस जंगल को नो गो जोन की लिस्ट मे डाल दिया था पर, इसके बावजूद कई प्रोजकेट को मंजूरी मिली, क्योंकि नो-गो नीति कभी पूरी तरह लागू नहीं हो सकी।
पेसा कानून
पेसा कानून के मुताबिक शेड्यूल्ड एरिया मे खनन के लिए पंचायतों की मंजूरी जरूरी है, इस प्रोजेक्ट के वजह से कई आदिवासी लोगो को अपने ही घर से बेदखल होना पड़ेगा। इस तरह की कटाई के लिए स्थानीय लोग अपने अपने स्तर पर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। विरोध को दबाने के लिए गाँव गाँव मे पुलिस फोर्स तैनात है। पुलिस ने कई प्रदर्शनकरियों को हिरासत मे लिया काइयों को, अपने ही घर मे नजर बंद किया।
Aadani group
अडाणी को कोल माइंस के लिए यह जमीन दी है। कई हेक्टेयर जंगल मैदान मे तब्दील कर दी गयी है। किसी भी बाहरी को इस जगह जाने की अनुमति नहीं है।
जंगल काटने के कई नुकसान हो सकते हैं, जो प्राकृतिक पर्यावरण, वन्यजन, और मानव समुदाय को प्रभावित कर सकते हैं:
- बायोडाइवर्सिटी की हानि: जंगलों में अनेक प्रजातियाँ जीवित रहती हैं जो अन्य प्रजातियों के संजीवनी होती हैं। जंगल काटने से इन प्रजातियों का संरक्षण और उनकी हानि हो सकती है।
- जल स्रोतों का हानि: जंगलों को जल स्रोतों का स्रोत माना जाता है, और इनकी कटाई से नदियों का स्तर घट सकता है, जिससे जल संभावना में कमी हो सकती है।
- आत्मसमर्पण स्थल की हानि: जंगलों में अनेक वन्यजीवन और स्थानीय जनजातियाँ रहती हैं जो उनके आत्मसमर्पण स्थलों का आधार बनाए रखती हैं। जंगलों की कटाई से इन समर्पण स्थलों की हानि हो सकती है।
- जलवायु परिवर्तन: जंगलों की कटाई से वायरमेंट को बदलने में मदद हो सकती है, जिससे जलवायु परिवर्तन बढ़ सकता है।
- वायुमंडलीय प्रदूषण: जंगलों की कटाई से वायुमंडलीय प्रदूषण बढ़ सकता है, क्योंकि जंगलें कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करती हैं और उसे ऑक्सीजन में परिणामित करती हैं।
- स्थानीय जनसंख्या के लिए समस्याएँ: जंगलों की कटाई से स्थानीय जनसंख्या के लिए समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, क्योंकि उनकी आजीविका और आधारित साधनों में कमी हो सकती है।
आदिवासी समाज इस छत्तीसगढ़ में सहदेव जंगल कटाई का सबसे ज्यादा विरोध कर रहा है, इसको लेकर कोई भी बड़ा नेता या फिर दूसरे समुदाय खुलकर सामने आ नहीं रहे हैं, और इसका विरोध नहीं जता रहे हैं, आपको बता दे कि अकेला आदिवासी सांस नहीं लेता है। हर एक प्राणी हर एक जीव को सांस लेने की जरूरत पड़ती है, इस तरह की जंगल कटाई से आने वाले समय में बहुत ही दुष्परिणाम होने वाले हैं, यह सरकार को भी समझने की जरूरत है, और आम लोगों को भी समझने की जरूरत है, अगर हमें आज ही जीना है, आज में ही जीना है, तो हमें जंगल की जरूरत नहीं है, लेकिन जो हमारे आने वाली पीढ़ी है, उसके लिए यह बहुत ही कष्ट दी निर्णय दिया गया है, सरकार द्वारा जो की आने वाले समय भविष्य खराब करने की दिशा में बढ़ाया गया कदम है।